EXCLUSIVE---- ये अग्निकांड नहीं हत्या है!

फर्ज से हुई मुठभेड़ में गई 43 जिंदगियां



नई दिल्ली, आज की दास्तान। रविवार की सुबह जब सूरज निकला तो दिल्ली के लिए उजाला नहीं, बल्कि दर्द का अंधेरा लेकर आया। फिल्मिस्तान इलाके की तंग गलियों में उठी लाल लपटें और आसमान को छूता काला धुआं मौत का संदेश लेकर आया था। सुबह करीब 3 बजे एक फैक्ट्री में ऐसी आग लगी जिसमें जलकर 43 जिंदगियां खाक हो गईं। कहा जाता है कि दिलवालों की है यह दिल्ली, यहां की हर एक छोटी बड़ी खबर पूरे देश की सुर्खियां बनती है। जैसे ही फिल्मिस्तान के इस अग्निकांड की जानकारी मिली तो हड़कंप मच गया पुलिस विभाग, फायर विभाग, केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, हरकत में आई। कोई घंटे भर की देरी से तो कोई 2 घंटे की देरी से पहुंचा तो किसी को 5 घंटे बाद मौके पर पहुंचने की फुर्सत मिली। घटनास्थल पर पहुंचे नेताओं और मंत्रियों ने दुख भी जताया और अपनी फितरत के अनुसार धधकती आग में राजनतिक रोटियां भी सेकी परंतु क्या इस संवेदना से सिस्टम की भेंट चढ़ने वाले मृतकों के परिजनों को इंसाफ मिलेगा।  
बताते चलें कि कई सालों से तंग गली में बनी बहुमंजिला इमारत में गत्ते की फैक्ट्री चल रही थी जो पूर्ण रूप से गैर कानूनी थी। बताया जाता है कि फैक्ट्री में शार्ट सर्किट से आग लगी है। फैक्ट्री में सो रहे मजदूरों को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि सुबह-सुबह लापरवाहियों की लपटों का उन पर हमला होगा। इस पूरे कांड में 43 मजदूरों की जान इस सड़े-गले सिस्टम की भेंट चढ़ गई, जिसके बाद मौके पर पहुंचे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मुआवजे का मरहम लगाया साथ ही जांच कराने की घोषणा कर दी। 
अब क्या... कुछ दिनों में मृतकों के रोते-बिलखते परिजनों की आवाज थम जाएगी और दिल्ली फिर से नए हादसे के इंतजार में बैठ जाएगी, लेकिन सवाल यही उठता है कि बार-बार आखिर दिल्ली को मौत की सजा क्यों झेलनी पड़ रही है, क्या कभी वो दिन भी आएगा जब अपने फर्ज से मुठभेड़ करने वाले जिम्मेदारों को अपने किए की सजा मिलेगी।


हादसों से पहले आखिर कहां रहते हैं जिम्मेदार


दिल्ली में हुए इस अग्निकांड में 43 लोग जिम्मेदारों की  लापरवाहियों के कारण अपनी जान गवां बैठे। सवाल यह है कि क्या आखिर इन तंग गलियों में वर्षों से अवैध रूप से चल रही फैक्ट्रियों की भनक किसी को नहीं थी, या हर किसी को उनका मुंह बंद रखने की फीस पहुंचाई जा रही थी। जिसके कारण इन फैक्ट्रियों को बढ़ावा मिल रहा था।


मेरठ भी कर रहा है किसी बड़े हादसे का इंतजार....


भड़की आग और उससे गई 43 लोगों की जान के बाद यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि क्या मेरठ भी किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है क्योंकि जिस प्रकार तंग गलियों में कोचिंग सेंटर, कांप्लेक्स, अपार्टमेंट व फैक्ट्रियां आदि संचालित की जा रही हैं और जिम्मेदार अधिकारी इन पर कार्यवाही करने की बजाए आंख मूंदे बैठे हैं, जिससे साफ लगता है कि यह जिम्मेदार अधिकारी किसी बड़े हादसे को दावत दे रहे हैं, क्योंकि यदि कोई हादसा होता है तो वहां न तो फायर ब्रिगेड पहुंच सकती है और ना ही एंबुलेंस जबकि जनहित में दैनिक आज की दास्तान इन जिम्मेदारों को कुंभकर्णी नींद से जगाने के लगातार प्रयास करता रहता है, बावजूद इसके यह आंखो पर पट्टी बांधे व कानों में रूई ठूस किसी बड़े हादसे का इंतजार करते रहते है।


फैक्ट्री मालिक पर फोड़ दिया ठीकरा, माल-मलाई खा गए जिम्मेदार विभाग


इसे बेशर्मी की हद नहीं तो क्या कहेंगे कि 43 निर्दोषों की मौत के बाद फैक्ट्री मालिक को ऐसे दबोच लिया गया हो जैसे किसी आतंकवादी को पकड़ने में सफलता हासिल हुई हो। दरअसल, इन निर्दोषों की मौत के गुनाहगार तमाम विभागों के वह जिम्मेदार अधिकारी भी हैं जिनके कांधों पर आवासीय क्षेत्रों में बनाई गई व बनाई जा रही इन अवैध फैक्ट्रियों को रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, परंतु अवैध वसूली के खेल के चलते भ्रष्ट अधिकारियों की करतूतों पर पर्दा डाल फैक्ट्री मालिक पर ही इसका ठीकरा फोड़ उसे जेल पहुंचा दिया गया। यह हाल दिल्ली का ही नहीं है बल्कि उससे ज्यादा बिगड़े हालात आवास विकास, मेरठ विकास प्राधिकरण के क्षेत्रों में भी हजारों की तादात में देखने को मिल जाएंगे, परंतु समय रहते इन्हें न रोकना व इन्हें बढ़ावा दे निर्दोष लोगों की जान लेना इन जिम्मेदारों की फितरत में शामिल हो चला है।